‘गीदड़ की शादी’ बच्चों के लिए कविता
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उमड़े बादल, घुमड़े बादल,
तेज हवा संग, उमड़े बादल।
कभी इधर को, कभी उधर को,
मनमस्ती में घुमड़े बादल।
उमड़ घुमड़ के बरसे बादल,
तड़के बादल, गरजे बादल,
जी भरके हैं, बरसे बादल।
रामू देखो श्यामू देखो,
चिंकी देखो मिंकी देखो,
मिल सबके या मैजिक देखो।
बिजली चमकी, बादल गरजा,
बारिश के संग, धूप है चमका।
दादी कहती, नानी कहती,
जब बारिश संग धूप है रहती।
बात है एक, अनूठी होती,
गीदड़ की तब शादी होती।
जब बर्षा संग धूप है होती
तब गीदड़ की शादी होती।
बाबू देखो, मुन्नी देखो,
साथ में बर्षा धूप को देखों।
रिमझिम रिमझिम बारिश आई,
तभी कहीं से धूप भी आई।
सतरंगी इंद्र-धनुष भी आई,
यूँ होती गीदड़ की सगाई।
उमड़े बादल, घुमड़े बादल,
तेज हवा संग, उमड़े बादल।
दिनेश कुमार भूषण