केकड़ा और कौवा, कहानी

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केकड़े और कौवे की कहानी

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एक बार की बात है। एक तालाब में एक केकड़ा रहता था। वह कभी-कभी पानी से निकलकर जमीन पर भी आ जाया करता था। इस तरह से वह जमीन और पानी दोनों जगह रहा करता था। एक दिन केकड़ा पानी से बाहर निकला और जमीन पर टहलने लगा, तभी एक कौवे की नजर केकड़े पर पड़ी। वह केकड़े को खाना चाहता था। इसलिए वह केकड़े पर झपट्टा मारा। इससे पहले कि वह केकड़े को पकड़ पाता, केकड़े ने देख लिया और उसने अपने चंगुल से कौवे की चोंच को पकड़ लिया।

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केकड़े ने कौवे की चोंच को बहुत कस के पकड़ रखा था। कौवे ने बहुत जोर लगाया, लेकिन खुद को छुड़ा न सका। कौवे की हालत पंचर हो गई थी। वह फड़फड़ा रहा था।केकड़ा पूरी ताकत से चोंच को पकड़े हुए था। कौवे की हालत बिगड़ते देख, केकड़े ने कौवे की चोंच को छोड़कर पानी में चला गया। कौवा छूट जाने के बाद भी उड़ने में असमर्थ रहा। वह काफी देर तक वहीं पड़ा रहा और पछताता रहा। उसकी समझ में तीन बातें आ गयी थीं।

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1- किसी को कमजोर नहीं समझना चाहिए। समय बलवान होता है जिसका समय बलवान होता है वही ताकतवर होता है।

2- बुद्धि ज्यादा ताकतवर होती है, दिमाग से बल का प्रयोग करना चाहिए।

3- शिकार हमेशा पूरे ध्यान, पूरे दिमाग और पूरी ताकत से शिकार करना चाहिए। थोड़ी सी चूक से लेनी की देनी पड़ सकती है।

दिनेश कुमार भूषण

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