चूहे और रसगुल्ले, बच्चों के लिए कहानी
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एक किसान का घर था। उस घर में एक चूहा और एक चुहिया रहते थे। उनके चार बच्चे भी थे। चारों बच्चे बड़े प्रेम से अपने घर में रहते थे। बच्चों के पापा रोज बच्चों के लिए खाने की वस्तुएं लाते थे। चूहों की मम्मी बाँट करके सभी बच्चों को खिलाती थीं। सारे बच्चे बहुत खुश रहते थे। चूहों के पापा अक्सर कहीं से रसगुल्ले का टुकड़ा लाते थे और अपने छोटे-छोटे बच्चों को खिलाते थे।
रसगुल्ला बच्चों को बहुत पसंद आता था। बच्चे सोचते कि पापा कहां से यह रसगुल्ले का टुकड़ा लाते हैं? कहीं ढेर सारा रसगुल्ला होगा जहां से पापा रोज रसगुल्ला लाते हैं। सारे बच्चे आपस में यही सोच रहे थे। उनमें से जो सबसे छोटा वाला चूहा था वह बोला कि हम सब एक काम करते हैं- एक दिन पापा जब बाहर जाएंगे तो हम सब भी उनके पीछे-पीछे चलेंगे और देखेंगे कि पापा कहां से रसगुल्ला लाते हैं।
सारे बच्चे प्लान बना चुके थे। अगले दिन जैसे ही उनके पापा बाहर निकले, सारे बच्चे भी उनके पीछे-पीछे चल दिए। चूहों के पापा को पता भी न चला कि बच्चे उनके पीछे आ रहे हैं। सारे बच्चे चुपके से सब देख रहे थे। पापा कहां जाते हैं, क्या करते हैं, सब देख रहे थे। तभी उनके पापा एक बड़े बर्तन के पास गए, जिस पर बड़ा सा करछुल रखा हुआ था। करछुल के सहारे उनके पापा चढ़कर बड़े बर्तन पर पहुंच गए। उनके पापा बड़े बर्तन में से एक रसगुल्ला खींच कर बाहर ले आए और खाने लगे। रसगुल्ला कुछ खाए और कुछ अपने बच्चों के लिए लेकर घर को चल दिए।
सारे बच्चे जब उनके पापा चले गए तो वे भी उसी करछुल के सहारे बड़े बर्तन पर चढ़ गए। वे सभी लटककर रसगुल्ला खींचने लगे। रसगुल्ला वजनी होने की वजह से वे रसगुल्ला खींच न सके, रसगुल्ले ही उन्हें बर्तन में खींच लिए। वे सभी बर्तन में गिर गए। अब बर्तन में से निकलना मुश्किल हो रहा था। सभी बच्चे अपने पैर से रसगुल्ले की चाशनी को ढब-ढब करके तैरने की कोशिश कर रहे थे। थक हार कर वे सभी रसगुल्ले पर चढ़कर बैठ गए और अपने शरीर में लगे चासनी को चाटने लगे। उनका पूरा शरीर चिपचिपा हो चुका था। अब करें भी तो क्या करें, बेचारे आ करके फंस चुके थे। सब एक दूसरे को देखकर हंस रहे थे, दुखी और परेशान भी थे।
उधर उनके पापा वापस घर पहुंचे। घर पर बच्चों को रसगुल्ला देने के लिए पुकारे, लेकिन कोई बच्चा नही आया। उनकी मम्मी ने बताया कि सारे बच्चे आपके पीछे ही निकल गए थे। देखिए आप जहां गए थे वहीं गए होंगे। चूहा तुरंत ही वापस उसी जगह पर पहुंचा जहां से वो रसगुल्ला लेकर आया था। वहां पहुंचा तो बच्चों के ची-ची की आवाज सुनाई पड़ी। आवाज रसगुल्ले के बर्तन से आ रही थी। बर्तन पर चढ़ करके देखा तो सारे बच्चे चासनी में डूबे हुए हताश और निराश बैठे थे। पापा को देखते ही बच्चों के जान में जान आयी। सब ने मिलकर आवाज लगाई- पापा! पापा! पापा ने कहा- निराश ना हों, उदास ना हों, मैं आ गया हूँ। अब मैं सबको बचा लूंगा। चलो सब स्माइल करो।
उनके पापा ने एक-एक करके उन सब को बाहर निकाला। घर पर सबको साथ ले गए। घर पहुंच कर बच्चों को शिक्षा दिए कि बच्चों बड़े लोग जो काम करते हैं छोटे बच्चों को वही काम बिना सोचे समझे नहीं करना चाहिए। बड़े लोगों की बल और बुद्धि अलग होती है, ज्यादा होती है। तुम सब जब बड़े हो जाओगे तो तुम्हारे अंदर भी उतनी ही बल और बुद्धि आ जाएगी। कौन सा काम कब और कैसे किया जाता है, जान जाओगे। तब बड़े लोगों का काम करना। अभी तुम सब छोटे हो तो छोटे बच्चों का काम करो। बड़े लोगों का काम करने की कोशिश करो तो बड़ों के सामने करो, नही तो ऐसे ही मुसीबत में पड़ जाओगे।
दिनेश कुमार भूषण
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